Monday, November 27, 2023

दीवाली मनाएं

   दीवाली मनाएं

 

घना है अँधेरा मगर ज्योति बनके,

दुर्गम डगर में खड़े हम मिलेंगे.

अगर मन द्रवित है मिथ्याचरण से,

सच के उजाले में हम ही मिलेंगे.

 

करो याद अर्जुन की उस चेतना को,

द्रवित हो खड़े रण में उस भावना को,

तिमिर ही तिमिर जब उसे दीखता था,

गलत ही गलत सब उसे सूझता था.

पराक्रम पराभव में ढलने लगी थी,

शक्ति भी जिसकी अब अस्ताचली हो गयी थी.

धर्म के पथ पे जब वो बेसहारा हुआ था,

अपने ही मन से जब वो हारा हुआ था.

 

तभी श्रीकृष्ण रोशनी बनके आये,

अंधेरी घटा में किरण बनके आये,

गिरते हुए को संभाला उन्होंने,

दिया पार्थ को धर्म का उजाला उन्होंने,

गलत और सही में था अंतर बताया,

उन्हें पहचानने का गुण भी सिखाया,

तब कहीं धनञ्जय ने गाण्डीव धारा,

तिमिर साधकों को था उसने संहारा.

 

आओ दिया एक हम भी जलाएं,

भटके हुओं को डगर तो दिखाएँ.

एक दूजे के मन में विश्वास जगा हम,

सारे जगत में दीवाली मनाएं.

 

© सुशील मिश्र

    12/11/2023

Friday, October 27, 2023

अहम्


 

अहम्


तुम्हारा कद बड़ा हैं,

रसूख उंचा है,

तो क्या डर जाऊं?

 

अभी तुम इख्तदार में हो,

कुछ भी कर सकते हो,

क्या इसी बात पे सिहर जाऊं?

 

पता है हमें, कि तुम्हारा अहम्,

आजकल आसमान छू रहा है,

तो क्या करूं, ये सुनके ही बिखर जाऊं?

 

हमें घुटनों पे लाने की, और नीचा दिखाने की,

कोशिश तो तुमने सच में पुरजोर की है,

तो क्या इतने भर से मैं मर जाऊं?

 

कदम ज़मीन पे और सर आसमान में है मेरा,

सीना चौड़ा हमेशा ईमान में है मेरा,

मोहब्बत से बोलकर ही नहीं देखा उसने,

वरना तो मैं हद से भी गुज़र जाऊं.

वरना तो मैं हद से भी गुज़र जाऊं....

 

© सुशील मिश्र

       27/10/2023

Wednesday, September 27, 2023

एहसास

                                            


                    एहसास

 

फिजां में तपन दिल में खराश सी है,

अब यहाँ हर एक शै उदास सी है.

 

कल तक जिनके चेहरों पे नूर दिखता था,

पता नहीं क्यों अब हर सूरत बदहवास सी है.

 

सीने में जलन, लब पे प्यास लिए फिरता है,

जाने क्योँ दिल में तड़प उसके बेहिसाब सी है.

 

लगता है बहुत ही ज़ुल्मों ग़ारत हुई है इनपे,

गौर से देखा तो उनके निशाँ आस पास ही हैं.

 

लड़ तो रहा है, हिम्मत तो दिखा रहा है,

पर सपनों के बिखरने के सुबूत, साफ़ भी हैं.

 

सच्चाई, इमानदारी और खुदमुख्तारी, ये वो फलसफे हैं,

इन रास्तों को अख्तियार करने वाले, आजकल निराश भी हैं.

 

जिन्होंने राह दिखाई, कम से कम उनपे तो भरोसा था,

अब जा के पता चला की उनके कई चहरे और कई नकाब भी हैं.

 

कोइ बात नहीं, जिसको जो करना है कर ले, हमें उपवाले पे ऐतबार है,

आ जाओ अपने सवालों साथ, हमारे पास हर एक का माकूल ज़वाब भी है.

 

© सुशील मिश्र

     27/09/2023

Monday, May 18, 2020

गहराई


गहराई

हाँ, ये मुझे भी मालूम है, कि जिनके आँखों में सपने और नज़र पंज़िल पे होती है,
वो ज़िंदगी में पीछे मुड़कर देखने का तकल्लुफ़ नहीं उठाया करते.
मगर ये ज़िंदगी है ज़नाब कोइ रेस नहीं, थोड़ी तसल्ली बरतें,
गुज़रे मंज़रों से ही यहाँ सही रास्तों और मंजिलों की तफ्तीश होती है.

अच्छा है वो ताउम्र मुझे पत्थर ही मानता रहा,
मुसलसल मुझे जिम्मेदारियों का गट्ठर ही मानता रहा.
क्या ज़रुरत है कि दुनिया जाने कि मेरे सीने में भी मोम सा दिल है,
खुश हूँ के कम से कम वो समंदर को नदी तो मानता रहा.

गम है कि बाहर से ही मुझे आंकती रही दुनिया,
बस झरोखों से ही मुझे क्यों झांकती रही दुनिया.
कुछ ने हिम्मत की, नज़दीक आये, तब जाके कहीं इल्म हुआ,
फिर तो ताउम्र मुझे हैरत से बस ताकती रही दुनिया.

...सुशील मिश्र.
18/05/2020

Friday, November 29, 2019

उम्र का भरम


उम्र का भरम

ये भरम है ज़माने का,
कि उम्र बढ़ने पर बातें कम समझ आती हैं.
असल में यही तो वो वक्त है,
जब आपकी बातें ही ग़ज़ब ढाती है.

मोहब्बत, इबादत, अदावत, खिलाफत,
इस उम्र तक तज़ुर्बे का भंडार हो जाती हैं.
कायदे से यही वो उम्र है, जब,
तस्वीर की बारीकी ठीक से नज़र आती है.

तो मायूस न हो मन,
उम्र तो फ़कत एक आंकड़ा है.
इस उम्र में आकर ही, असल में तुम्हें,
आज की पीढ़ी का सही मुस्तकबिल नज़र आता है.

© सुशील मिश्र
       29/11/2019

Saturday, September 7, 2019

चाँद


चाँद

कहीं सुना है, कि चाँद यूँ हीं झट से,
किसी के आगोश में आता है,
अरे ये चाँद है, इसके अपने जलवे हैं,
अब ये कुछ नखरे तो दिखाता है.

इसकी अपनी एक ख़ास तासीर है,
जो की इसे सच में चाँद बनाता है,
और यही एक बात है,
की ये सबको लुभाता है.

कोई बात नहीं, नज़दीक तो पहुँच ही गए हैं,
उससे अपना राब्ता तो कायम हो ही गया है,
अब पहली बार झटका दिया तो दिया,
कशिश तो उसके दिल में भी, कायम कर ही दिया है.

अब तक तो उसे हमारी भी काबिलियत का,
ठीक ठाक अंदाजा लग ही गया होगा,
अब तड़पने की बारी उसकी है,
उसे हमारी मोहब्बत का अंदाजा लग ही गया होगा.

फिर लौटेंगे उसी जूनून के साथ,
उसी शिद्दत के साथ, उसी मोहब्बत के साथ,
इस दौरान वो चाँद भी तड़पेगा, हमारी राह देखेगा,
और जब मिलेंगे तो पूरी शिद्दत के साथ आगोश में लेगा.

© सुशील मिश्र
   07/09/2019



Friday, January 26, 2018

गणतंत्र

गणतंत्र

गणतंत्र में जनतंत्र के विश्वास का जो मंत्र है,
खंडित उसी को करने का अब बड़ा षडयंत्र है.
दंगा फसाद मिथ्या प्रवंचन नित्यप्रति जो हो रहे,
इनका निदान “संविधान” बस यही एक यन्त्र है.

राष्ट्र है युवा हमारा तीव्र गति में चल रहा,
हर असंभव को भी संभव करने को वो मचल रहा.
सन्मार्ग में अनगिनत बाधाएं आयेंगी ज़रूर,
पर, इनका निदान “संविधान” बस यही एक यन्त्र है.

राष्ट्रध्वज ही प्रेरणा का श्रोत है यह जान लें,
राष्ट्र उन्नति ही समुन्नति का नियम है मान लें.
राष्ट्रभाषा राष्ट्रगान पर संकट यदि कोई दिखने लगे,.
इनका निदान “संविधान” बस यही एक यन्त्र है.

© सुशील मिश्र.

 26/01/2018