Sunday, October 28, 2012




किताब--वक्त में जो कहीं का था,

हज़ार ज़लज़ले सहे होंगे तभी वो था,

पाँव ज़मीं पर यूं टिकाये थे उसने शिद्दत से,

फलक दमकता रहा रौशनी में,

क्योंकि वो ताउम्र खुदा की बंदगी में था.

© सुशील मिश्र.

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