Sunday, November 11, 2012

नमन





नमन

आज अर्चन कर रहे हैं हम सभी उन्मुक्त मन से,
वन्दना भी हो रही है भावनाओं के सुमन से.
लोभ लालच त्यागकर अब स्वयं का निर्माण कर लें,
संपदा वैभव भुवन की मिल रही श्री हरि नमन से.

ज्ञान में विज्ञान में तुम सकल समता भाव रखना,
मित्रजन होँ या अपरिचित आचरण अपना परखना.
मार्ग दुर्गम है बहुत इस साधना के क्षेत्रफल का,
श्री हरि को ह्रदय में धर कंटकों में तुम विचरना.

ध्येय ओझल हो न जाए आपके चंचल नयन से,
साधना भी डिग ना पाए भावनाओं की छुअन से.
मन, ह्रदय और आवरण (तन) को एक माला में पिरोकर,
श्री हरि का ध्यान अब हम कर सकें स्तुति नमन से.

© सुशील मिश्र.

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