Friday, November 9, 2012




यूँ तो ऐतबार करना किसी पर भी,
होता है बेहद मुश्किल.
बहुत दर्द होता है,
जब आपका दोस्त ही निकले संगदिल.
फिर भी ये सोचकर की चलो,
रहीं होंगी उसकी भी कुछ मज़बूरियाँ खुद की.
हमने फिर से दोस्ती हाथ बढ़ाया,
क्योंकी वो भी जानता है कि हम हैं बहुत खुशदिल.

© सुशील मिश्र.

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