Saturday, December 8, 2012

वादा


वादा


मुहब्बत कि ख्वाहिश में सदियाँ गुजारीं,
अदावत भी उनकी हमने सारी भुला दीं.
यही सोचकर राहें तकते रहे हम,
वफ़ा ही करेंगे ये कहते रहे हम.


बहुत अर्से बाद उनका संदेशा भी आया,
हमने ये सोचा कि वादा निभाया.
मगर आदतन उसने बिजली गिरा दी,
मोहब्बत निभाई मगर आधी-आधी.


ये आधा हमें बहुत नागवार गुजरा,
इतने इंतज़ार पर भी ना ये सुधरा.
आधे की कोई ज़रूरत नहीं थी,
पूरे से हमको मुहब्ब्बत हुई थी.


जो किश्तों में लोगे तुम सब्र की परीक्षा,
कहीं तुमको मांगनी पड़ जाये न भिक्षा.
तो वापस लो अपनी ये किश्तों की यारी,
उतारो ये अपने दिल की खुमारी.


ज़रूरी नहीं के तुम कल ही मिलो,
इतना लिया कुछ समय और लो.
मगर जब मिलो पूरे मन से मिलो,
हम तभी समझेंगे तुमने यारी निभा दी.


मुहब्बत कि ख्वाहिश में सदियाँ गुजारीं,
अदावत भी उनकी हमने सारी भुला दीं.

मगर आदतन उसने बिजली गिरा दी,
मोहब्बत निभाई मगर आधी-आधी.

© सुशील मिश्र.
 07/12/2012



  

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