Friday, January 25, 2013

इल्ज़ाम



इल्ज़ाम

अगर रास्ता दुर्गम नहीं है,
तो बिना हिचके ये मान लीजिए,
की मंजिल में कोई दम नहीं है.

वो पहली मोहब्बत का नशा,
यकीनन भूल तो जाते हम,
मगर क्या करें, ये दिल है मौसम नहीं है.

दोनों के दरमियाँ हुआ जो फासला,
उस जुदाई का था हमें भी रश्क,
पर हम जानते हैं कि तुम्हें इसका इल्म नहीं है.

पहले तो उसके वजूद को ही तोड़ दिया,
और फिर खुद के रसूख से अपना भी लिया,
ये तो किसी भी लिहाज़ से मरहम नही है.

अगर उसने कहा कि ये मुमकिन नहीं,
तो उसके कारण दो ही होंगे,
या तो वो मज़बूर है या उसमें अब दम नहीं है.

फासला बहुत था दोनों में जुदाई के बाद,
ऐसा लोग कहा करते हैं,
क्योंकि लोग कान हैं धडकन नहीं हैं.

अगर मुझमें दिल नहीं है,
तो ये बात एकदम साफ़ मान लीजिए,
कि मेरे लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है.

क्योंकि अक्सर दिल के हांथों,
 मज़बूत लोग भी मजबूर  हो जाया करते हैं,
दूरियां तो अमूमन दिलों में ही पैदा होती हैं,
और हम इल्ज़ाम ज़माने को दिया करते हैं.
और हम इल्ज़ाम ज़माने को दिया करते हैं.
          और हम इल्ज़ाम ज़माने को दिया करते हैं...........


© सुशील मिश्र.
25/01/2013






2 comments:

KRISHNA said...

Kya bat hai ji! Bahut Achche

YATHARTH DRISHTANT said...

dhanyavad Krishna ji......