Thursday, May 2, 2013

किसान


किसान

श्रम की भक्ति करने वाला आज हुआ लाचार है,
पता नहीं क्यों उसके संग ही इतना दुर्व्यवहार है.
जिसके खून पसीने से देश हुआ खुशहाल है,
उन्हीं किसानों मजदूरों पर इतना अत्याचार है.

ऊंचे ऊंचे महलों को पाकर हम तो संतुष्ट हुए,
उसने बोया हमने खाया तब जाकर हम पुष्ट हुए.
उसकी मेहनत स्वेद-कणिकाएँ हमको जीवन देती हैं,
फिर भी सारे नीति नियंता क्यों उसके आज विरुद्ध हुए.

शहरी सारे पढ़े-लिखे उसको अज्ञानी कहते हैं,
जेनेरटर से धुँआ फेंकते खुद को ज्ञानी कहते हैं.
पुष्प फल और औषधि से वो वातावरण सजाता है,
ए सी में बैठे बैठे हम खुद को ज्ञानी कहते हैं.

ज्ञानी हैं हम हमने भी तो पर्यावरण सजाया है,
बाहर से इम्पोर्ट कराकर युकेलिप्टस लगवाया है.
धरती को जो बंजर करदे ऐसा ज्ञान हमारा है,
उस अज्ञानी कृषक को देखो देसी नीम लगाया है.

अज्ञानी के आँगन में तुलसी का पौधा खिलता है,
जिससे चौबीस घंटे देखो प्राणवायु (आक्सीजन) भी मिलता है.
ज्ञानी होकर हमने भी तो कितना बड़ा तीर मारा,
प्लास्टिक का पौधा अब तो अतिथि कक्ष में मिलता है.

वो किसान जो सर्दी आतप वर्षा में भी डिगे नहीं,
फसलों के संग स्वयं सहे सब फिर भी देखो हिले नहीं.
जिसने बोया उसी की बोली यही न्याय का तर्क है,
वो सत्ता भी सत्ता क्या? जो घाव पे मरहम रखे नहीं.

मेहनत जिसकी फसल उसी की यही समय की मांग है,
जिसने इसमें अड़चन डाली समझो वो बेईमान है.
हम होते हैं कौन अनाजों पर बोली रखने वाले,
बोया जिसने काटेगा वो सदियों से यही विधान है.

धरती माँ का बेटा जो उसके आँचल से बंधा रहा,
तेज दौड़ती दुनिया से बस इसीलिए वो कटा रहा.
हल्दी धनिया मिर्च मसाले सब उसने ही तो बोये हैं,
फिर बिना स्वाद के भोजन से वो जीवन है क्यों बिता रहा.

वो सबको जीवन देता है हम भी तो कुछ देना सीखें,
राष्ट्रदेव की इस आहुति में हम भी तो एक रेखा खींचें.
पल-पल क्षण-क्षण तिल-तिल जलता ऐसा तो वो दीप पुंज है,
उस दीपक की बाती में हम अपना स्नेह पिरोना सीखें.

आओ दूर भगाएं हम सब ऐसी लचर व्यवस्था को,
जिसमें धरती के सुत का नहीं कोई सम्मान है.
खून पसीना बहा के जिसने इस भूमि को मान दिया
खेतों की जो पूजा करता वो पृथ्वी का भगवान है....
खेतों की जो पूजा करता वो पृथ्वी का भगवान है....
खेतों की जो पूजा करता वो पृथ्वी का भगवान है........

© सुशील मिश्र.
02/05/2013

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