Thursday, February 6, 2014

सच

सच

नगरी नगरी द्वारे द्वारे कूल किनारे नहीं मिला,
धरती की क्या बात है प्यारे अम्बर में भी नहीं मिला.
मन के अंदर बैठा है जो, उसको बाहर ढूढ़ रहे,
फिर कहते हो फल मेहनत का मुझको क्योंकर नहीं मिला.

अहं मनुज का बहुत बड़ा है खुद के छोटे ज्ञान पर,
तर्क कुतर्क बहुत करता है सदियों के विज्ञान पर.
खुद की गलती से न सीखे और फिर से उसको दोहराए,
बहुत बड़ा बट्टा रखता वो, खुद के ही सम्मान पर.

सारे प्रश्न उसी से क्यों हैं जो सच का अनुगामी है,
इसी आड़ में बच जाता है जो सच में खल कामी हैं.
संभल संभल कर नहीं चले तो, फिर पीछे पछताओगे,
कुटिल सियासत अक्सर देती सच्चे को बदनामी है.

ज्ञान बांटना बहुत सरल है मगर सीखना मुश्किल है,
अपना सबकुछ यहाँ लुटाकर जगत जीतना मुश्किल है.
इस मायावी दुनिया में रहकर इतना तो जान लिया,
दीप जलाना बहुत सरल है जलते रहना मुश्किल है.

© सुशील मिश्र
  06/02/2014



Tuesday, February 4, 2014

माँ शारदे

माँ शारदे

माँ शारदे, माँ शारदे, माँ शारदे, माँ शारदे,
बुद्धी कला विज्ञान का वरदान दे माँ शारदे.
माँ शारदे, माँ शारदे, माँ शारदे, माँ शारदे,
संगीत सा सुरभित रहूँ वह ज्ञान दे माँ शारदे. llमाँ शारदेll

चहुँ ओर काली रात है अज्ञान का विस्तार है,
संहार की इस मानसिकता का बड़ा ही भार है.
काली घटा को छांट कर तू ज्ञान का आकार दे,
संस्कृति सदा उन्नत रहे इसको नया विस्तार दे. llमाँ शारदेll

राज ही अब नीतियों को क्यों रहा दुत्कार है,
मीठे वचन आतुर नयन का क्यों नहीं विस्तार है.
इस राजनीति को नया अब नीतियों का सार दे,
उल्लसित संसार दे अब उल्लसित संसार दे. llमाँ शारदेll

लोकतंत्र में यहाँ अब तंत्र का ही लोप है,
भ्रष्टता और निम्नता का हो रहा विस्फोट है.
दीन जन का हित सधे वो तंत्र दे माँ शारदे,
राष्ट्र उन्नति कर सके वो मंत्र दे माँ शारदे. llमाँ शारदेll

© सुशील मिश्र
04/02/1014

    (वसंत पंचमी )