Thursday, May 15, 2014

ऐसा क्यों इंसान है


ऐसा क्यों इंसान है


एक चहरे पे कई चहरे,
ऐसा तो इंसान है,
फितरत जिसकी गिरगिट जैसी,
ऐसा क्यों इंसान है.

कल तक था जो खिला खिला सा,
खुशबू बांटा करता था.
आज नज़रिया उसका बदला,
ऐसा क्यों इंसान है.

सीधा सादा हिम्मतवाला,
सच जिसकी हर बातों में था.
वही झूठ का बना खिलाड़ी,
ऐसा क्यों इंसान है.

दिल का दर्द जुबां पे जिसके,
हमने सुना नहीं था अब तक.
अब लोगों के राज़ बेचता,
ऐसा क्यों इंसान है.

एक चहरे पे कई चहरे,
ऐसा तो इंसान है,
फितरत जिसकी गिरगिट जैसी,
ऐसा क्यों इंसान है.

© सुशील मिश्र.

15/04/2014

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