Sunday, November 15, 2015

हक़

हक़

हमें इल्जाम देके गुनहगार बनाया है उसने,
खता क्या थी ये भी नहीं बताया है उसने.
हमने तो बहुत मेहनत से,
पहाड़ों में भी रस्ता निकाला,
मगर आज हमें ही रस्ते पे लाया है उसने.

मेहनत की शिद्दत को नहीं देखा उसने,
हमारी पुरज़ोर हिम्मत को नहीं देखा उसने.
गम इस बात का नहीं के फैसला मेरे खिलाफ था,
गम तो इस बात का है की,
फैसले को उसूल के तराज़ू से नहीं परखा उसने.

ऐसा लगता है के मेरे किरदार को ठीक से पढ़ा नहीं उसने,
और ये सच है! के सच को, सच से गढ़ा नहीं उसने.
इतना तो हक़ था के जान पाते,
की खता क्या थी हमारी,
मगर हमें इस हक़ से भी बेदख़ल किया उसने.

हमें इल्जाम देके गुनहगार बनाया है उसने,
खता क्या थी ये भी नहीं बताया है उसने.
हमने तो बहुत मेहनत से,
पहाड़ों में भी रस्ता निकाला,
मगर आज हमें ही रस्ते पे लाया है उसने.

© सुशील मिश्र.
15/11/15


Wednesday, November 11, 2015

दीपोत्सव

दीपोत्सव

अंधेरा छटेगा दीपक जलेगा,
नई आस का फिर उजाला दिखेगा.
कठिन राह आसान होती दिखेगी,
उम्मीद का दिया देखो फिर से जलेगा.

बुराई का सम्बल ठहरा बहुत है,
उम्मीदों पे भी देखो पहरा बहुत है.
मगर रोशनी गर जलाएं दिलों में,
सच का समन्दर गहरा बहुत है.

उजाले का उत्सव खुशी से मनायें,
बच्चों को विद्या का दीपक दिखाएँ.
रोशनी से जगमग आँगन हो सबका,
दीपोत्सव की सबको मंगलकामनाए.

© सुशील मिश्र.
10/11/15


Thursday, October 8, 2015

बदनाम सियासत

बदनाम सियासत

दीन-ओ-ईमान को मुसलसल,
जो यहाँ बदनाम करते हैं.
कुछ लोग हमारी सियासत में,
अब ऐसे भी काम करते  हैं.
पता है! जिन्हें मुल्क का,
पहरेदार बनाया हैं हमने.
आजकल वो ही कौमी एकता के लिए.
कफ़न का इंतज़ाम करते हैं.
हाँ, आपने दुरुस्त समझा,
ये वो ही हैं जो सर-ऐ-आम,
वतन की आबरू नीलाम करते हैं.

जले पे मिर्च का कुछ लोग,
अब यूं इंतज़ाम करते हैं.
के जख्म अपनों का हो,
तब भी चर्चा-ऐ-आम करते हैं.
खुद के गिरेबाँ में जिन्हें,
झांकाना ना आया अब तलक.
यहाँ कुछ ऐसे सियासतदाँ भी हैं,
जो कौमी (देश) इख्तलाफत (मनमुटाव) भी
दुनिया के बाज़ार में खुल-ऐ-आम  करते हैं.


© सुशील मिश्र.

  07/10/15

Sunday, July 5, 2015

दिलों के दर्द

दिलों के दर्द

सही हो तो गलत से यूँ कभी झुठलाये नहीं जाते,
जो आंसूं गम के हैं तो सब को बतलाये नहीं जाते.
ये दुनिया जालसाज़ी और फ़रेबी हो गई है अब,
दिलों के दर्द चौराहों पे दिखलाये नहीं जाते.

समन्दर की सतह पर मोती मिला नहीं करते,
बवंडर की केवल खबर पर हौसले झुका नहीं करते.
जो तुमको मालूम है की अंगारों भरा सफ़र है ये,
तो, दिलों के दर्द चौराहों पे दिखलाये नहीं जाते.

ग़मों का एक समंदर है तेरे दिल में मेरे दिल में,
इबादत भी अजब सी है तेरे दिल में मेरे दिल में.
पर हसेंगे लोग जो दर्दे दिल बयां कर दिया तूने,
क्योंकि, दिलों के दर्द चौराहों पे दिखलाये नहीं जाते.

© सुशील मिश्र
 05/07/2015




Sunday, June 21, 2015

शमशीर हो गया हूँ मैं

शमशीर हो गया हूँ मैं


खामोश परिंदों सा हो गया हूँ मैं,
अब तो लगता है की,
कहीं खो गया हूँ मैं.

सब मसरूफ़ हैं खुद की ही सुनाने में,
ऐसा क्यों लगता है,
के मज़बूर हो गया हूँ मै.

ज़िंदगी ने एक साथ इतने रंग दिखाए,
कि अब तो लगता है,
बस उसी की तस्वीर हो गया हूँ मै.

अपनी बातों का फलसफा मुझे कुछ यूँ दिखा,
कि शबे रात भी,
शहर की तहरीर हो गया हूँ मै.

अन्याय के खिलाफ मैंने अभी कदम उठाया ही था,
के दुनिया जहान में,
जाने क्यों शमशीर हो गया हूँ मैं.


© सुशील मिश्र

    21/06/2015